यथार्थ!!!

छीनता हो स्वत्व कोई, और तुम , त्याग तप से काम  लो यह पाप है ,
पुण्य है, विछिन्न कर देना उसे , बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है!!!!

          दिनकर की इन्ही पंक्तियों से सीख  लेने  की आवश्यकता है  हमारी सरकार को ! ऐसा कैसे हो सकता है कि हम ऐसे  देश  से हाथ मिलाना चाहे जिसके हाथ हमारे देशवासियों के खून से रंगे हुए हो ! आज समझना होगा कि आखिर क्या है हमारी प्राथमिकता ?  एक फिल्म , एक भाषा , एक अभिनेता ,एक नया राज्य ,एक और स्मारक और पार्क, या ये देश जो इन सबके वजूद का स्रोत है! निश्चय ही आज सभी की भूमिकाएं तय होनी चाहिए !

         किसी  फिल्म का  प्रस्तुतीकरण होना चाहिए, लेकिन क्या इसके लिए देश की सुरक्षा से समझौता ? बिलकुल नहीं ! गृह मंत्री का ये बयान कि खुफिया एजेंसियां फेल नहीं हुयी है, इसी बात की ओर इशारा करती है कि कमी राज्य सरकार के तंत्र में है!  कोई अभिनेता इतना महत्वपूर्ण कैसे हो सकता कि एक प्रमुख राजनितिक दल पूरे राज्य की ब्यवस्था तहस नहस करने को आतुर हो जाये ! भूमिका की जांच उनकी भी होनी चाहिए जो इस भयावह आतंकवाद और नक्सलवाद  को भुलाकर स्वयं की मूर्तियों की रखवाली के लिए विशेष टास्क फोर्स गठित करने में संलग्न  हैं !

        यहाँ बात उनकी भी होनी चाहिए जो एक भाषा और तथाकथित भूमिपुत्रों के नाम पर संविधान की धज्जियाँ उधेड़ने में ही अपनी सार्थकता की व्यर्थ तलाश कर रहे हैं ! आज इन सभी संकीर्ण हितों से बढ़कर देशहित को महत्व देना समीचीन है क्यूंकि हमें नहीं भूलना चाहिए की हमारी नागरिकता एक है और वो है भारतीय होना ! सभी को मिलकर राष्ट्र भावना से भरकर और अपने तुच्छ स्वार्थों को भुलाकर एक ही उद्देश्य के लिए काम करने की आवश्यकता है जो है भारत की रक्षा ! अन्य सारी बातें इसी से तय होती है !! 

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