प्रिय ....

स्नेहिल छुअन की अभिलाषा ,
मनमीत से मिलने की आशा ,
ले दूर तलक मैं आया हूँ ,
मैं प्रेम पुजारी हूँ प्यासा !!

प्रिय के प्रति पूर्ण समर्पण है ,
जो कुछ मेरा सब अर्पण है ,
मैंने खुद को उनमें है पाया ,
प्रिय ही तो मेरा दर्पण है !!

नख-शिख सौंदर्य समाया है ,
मन निर्मल, निश्छल पाया है ,
मैं मोहित,मुदित हूँ मतवाला ,
प्रिय प्रेम मेरे मन भाया है !!

निजहित मे नहीं है हित मेरा ,
जग हित  का लक्ष्य रहा मेरा , 
प्रिय लक्ष्य मे मेरे, साथ रहा ,
मैं धन्य हुआ पा, संग तेरा !!
मैं धन्य हुआ पा, संग तेरा !! 

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