बस...बस !! अब मैं बोलूँगा
नहीं रोकूंगा खुद को
डरूँगा नहीं , लडूंगा !
अब अपनी बंद आँखें खोलूँगा !
हर्ज नहीं ग़र मारा जाऊंगा
चुप रहकर , रोज-रोज-
मरने से तो बेहतर है !
किसी को मरते देख ,
किसी को मारते देख ,
आत्मचित्त , स्वार्थपूरित नेत्र
अब मैं खोलूँगा , अब मैं बोलूँगा !
अपराध करना जुर्म है ,
तो जुर्म है उसे होने देना भी !
सिर्फ लच्छेदार भाषण ,
लम्बी लम्बी डींगे ...
नहीं नहीं... अब सहूंगा नहीं ,
न ही सहने दूंगा !
पकड़ लूँगा हाथ
ग़र उठेगा किसी औरत पर !
छुड़ाउंगा मासूम बच्चों को
जो शोषित हैं ,
शमित हैं , नहीं नहीं...
वे बालश्रम से दमित हैं !
लूटने नहीं दूंगा
अश्मिता अब किसी और की !
घटने नहीं दूंगा
मान अपने बुजुर्गों का !
फूटने नहीं दूंगा
भाग्य अपने भारत का !
तैनात रहूँगा
हर समय , हर जगह !
अपनों को जोडूंगा
बढ़ाऊंगा अपनी शक्ति !
लेकिन तमाशबीन , लाचार...
..चाय की चुस्की और
झूठी आह के साथ
सबकुछ भूलकर
स्वार्थ में पुनः
डूब जाने की आदत !
अब मैं छोडूँगा !
करूँगा..लडूंगा..मरूँगा
पर चुप नहीं बैठूँगा !
अपने अधिकारों में
कर्तब्यों को भी जोडूंगा !
अब मैं बोलूँगा
आत्माचित्त , स्वार्थपूरित नेत्र
अब मैं खोलूँगा !!
(फोटो : साभार गूगल इमेज )