ज़ालिम ये जिंदगी ...

ज़ालिम ये जिंदगी , ग़मों का सैलाब लाती है !
ज़ालिम ये जिंदगी , ग़मों का सैलाब लाती है !
रुलाती है ज्यादा , और थोड़ा हंसाती है !
कहते हैं सभी , कि खुश रहो यारों ,
पर कौन बताये हमें , ये खुशी कहाँ से आती है ?

बड़ी उम्मीद से , कदम हम जहाँ में रखते हैं !
बड़ी उम्मीद से , कदम हम जहाँ में रखते हैं !
आखिर में, इन्हीं उम्मीदों के , बोझ तले दबते हैं !
कहते हैं , सपने बड़े देखा करो ,
कम्बख्त सपने , क्या पेट भरा करते हैं ?

ख़ुदा अपने बन्दों का इम्तिहान लेता है !
ख़ुदा अपने बन्दों का इम्तिहान लेता है ! 
छोटी सी जिंदगी भी , टुकड़ों में देता है !
कहते हैं , ख़ुदा का रहमों करम है सब ,
ग़मों से जूझने की ताकत भी , खुदा ही तो देता है !

हमारी ख्वाहिशें गर , खुद में सिमट जाएँ , तो क्या करें ?
हमारी ख्वाहिशें गर , खुद में सिमट जाएँ तो , क्या करें ?
सभी को भूल कर , सब खुद पे लुटाएं , तो क्या करें ?
बहुत कुछ रख के भी , ख़ाली ही जायेगा ,ऐ मेरे दोस्त !
जो इंसान से हैवान बनाये , ऐसी दौलत का क्या करें ?

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