माँ बिन बालक ...

मात - स्नेह - वंचन से आहत ,
मात - स्नेह की अविरल चाहत ,
पाले.. मन में नन्हां बालक ,
तड़प रहा जीवन में नाहक !

बिन माँ , बालक की जो दशा है ,
आखेटक की जाल में जैसे फंसा है ,
दिन - दिन रोता याद न जाती ,
मात - मिलन का एक नशा है !

देख विधाता ! माँ की महिमा ,
तुझसे ऊपर माँ की गरिमा ,
स्नेहातुर बालक पर तू दया कर ,
पुनः न माँ बालक को जुदा कर !

माँ के दुःख भी आसीम निरंतर ,
माँ न करे संतानों में अंतर ,
पर्याय बन चुके जैसे माँ - दुःख ,
स्वप्न में भी ना मिलता है सुख !

आओ उस बालक से सीखें ,
बिन माँ हम सब उसी सरीखे ,
माँ का मान हो सबसे पहले ,
ईश्वर ! माँ के सब दुःख हर ले !

प्रेम से मीठी - मीठी बातें ,
बढ़ी उम्र की हैं सौगातें ,
इतना ही बस हमको करना ,
पड़े न माँ से हमें बिछड़ना !! 

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