यकीं है ख़ुद को कि ...

बहुत सोचा , बहुत समझा ,
मैं लेकिन सह नहीं पाया !
बिना देखे उसे , इक दिन ,
मगर मैं रह नहीं पाया !!

दिखाए ख्वाब उसने ,
जश्ने - ज़न्नत के , मुझे लेकिन !
हक़ीकत मैं उन्हें फिर भी ,
 कभी भी कर नहीं पाया !!

पहेली बनके रह गयी है ,
 देखो... ज़िन्दगी मेरी !
कि क़िस्मत ने दगा इक बार ,
 फिर मुझसे है फरमाया !!

वे कहते हैं मुसीबत , यूँ ही ,
 टल जाएगी.. ऐ मेरे दोस्त !
मुझे भी है यकीं , क्यूंकि ,
साथ मेरे , मेरे अपनों का है साया !!

ज़माने से नहीं सिकवा ,
शिकायत है न गैरों से !
ख़ुद ही को कोसता हूँ ,
दिल की मैं अपने , सुन नहीं पाया !!

अभी भी इल्म है मुझको ,
 कि मंजिल है मेरी मुमकिन !
दुखों के बादलों संग मैं ,
 अभी भी बह नहीं पाया !!

यकीं है ख़ुद को कि ,
इकदिन सितारा मेरा चमकेगा !
शख्सियत की बुलंदी का ख़जाना ,
मेरे फिर , काम है आया !!

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