मन का संशय ...


हालिया अनुभवों स्व अनुदित कविता की कुछ पंक्तियाँ .....

संदेह सहित है सब जग में ,
संशय भय मेरे रग रग में !
मन दुःख से तब भर जाता है ,
अपनों के कांटे जब हों डग में !!

जब सब ही हों सच्चे मन के ,
मन भी सैम सुंदर हो तन के !
जब झूठ फ़रेब से बचा रहूँ ,
क्यूँ फिरूं ब्यथित पागल बन के !!

अब मन में संशय है इतना ,
खुद पर ही श़क मैं करता हूँ !
सांसें भी रोके रखता हूँ ,
जब कभी कभी मैं सोता हूँ !!

........................शिवम् (मुसाफ़िर) 

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