कहूं कैसे (भाग दो)

मधुर संगीत के पीछे , वो सुन्दर साज होता है !
मुहब्बत में कहाँ कब क्यूँ , कोई भी राज होता है !!
कहूं कैसे क्यूँ रूठे हो , नहीं मानोगे क्या अब तुम !
समर्पित हो जहाँ सब कुछ , वहाँ भला कब नाज होता है !!

दीवाना क्यूँ वो कहता है , वो पागल क्यूँ समझता है !
मोहब्बत कि नुमाइश क्यूँ , वो सरेआम करता है !!
वो मुझसे दूर कैसी है , मैं उससे दूर कैसा हूँ !
दिलों की आपसी बातें , क्यूँ वो नीलाम करता है !!

किसी को क्या फ़रक पड़ता , अगर हम जी नहीं पाते !
ज़माने की  जकारत का जहर , हम पी नहीं पाते !!
कहूं कैसे जमाने को , ज़माना क्यूँ न ये समझे !
दिलों की  दूरियों का ज़ख्म , कभी हम सी नहीं पाते !!
                                                         …………………जारी………।





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